आग की प्यास- रांगेय राघव




मुझे याद नही कि इससे पहले रांगेय राघव को कब पढ़ा था, शायद कोई एक -दो कहानियां पढ़ी होंगी, पर मुझे वाकई याद नही। रांगेय राघव ने लिखा बहुत है और अनुवाद कार्य बहुत किये है- शेक्सपियर के लगभग हर नाटक का हिंदी में अनुवाद रांगेय राघव ने किया है, प्राचीन हिन्दू मिथक, पुराण और ब्राह्मण ग्रंथो से बहुत सी कहानियां लिखी है। लेकिन ये जो इनका उपन्यास है, “ आग की प्यास” इसे पढ़कर ऐसा लगा मुझे की वह शेक्सपियर और उनके ट्रैजिक फ्ला के कांसेप्ट से काफी प्रभावित है।

उपन्यास की कहानी मानव की बहुत ही वीभत्स, नृशंष और कुत्सित मानसिकता को दर्शाने वाली है। एक गांव में एक गुरु जी के दो चेले रहते, दोनों अनाथ होते है, तो गुरु जी उन्हें अपनी शरण मे ले लेते है और उन्हें पढ़ाते लिखाते है। एक नाम रामदास और दूसरे का नाम बौहरा है। गुरु जी की एक बेटी भी होती है, जिसका नाम नारायनी होता। पढ़ लिख कर जब तीनो बड़े होते है तो रामदास गांव के स्कूल में मास्टर हो जाता है, नारायनी की शादी एक माधो नाम के जमीदार के साथ हो जाती है। कहानी का समय आजादी के बाद का है और जगह बिहार का कोई गांव है जो बरसात के महीने में जलमग्न हो जाता है। मास्टर रामदास को कोई औलाद नही होती, उनकी पत्नी दुर्गी बहुत ही सात्विक स्वभाव की महिला है, गांव में रामदास का बहुत सम्मान है। नारायानी को एक बेटी के बाद एक बेटा होता है। बेटी का नाम शकुंतला है।

अब बचा बौहरा। बौहरे को दुनिया से नफरत है। वह कोई नौकरी नही करता है। बचपन से ही वह अपने गुरु की बेटी को चाहता था, लेकिन जब उसकी शादी किसी और से हो जाती है, तो बौहरा अपना विवाह भी नही करता। कुछ पैसे जमा कर के वह सूद पे पैसे देने का धंधा शुरू करता है। उस देशकाल में लगभग हर आदमी को गांव में उधार लेने की जरूरत पड़ती थी। इस तरह आसपास के कई गांव में बौहरे की तूती बोलती थी। एक तो ब्राह्मण ऊपर से साहूकार। किसी भी कर्जदार के घर पहुँच जाता, सूद या असल की उगाही के लिए और खा पीकर वही आराम करता, माल मिला तो सही नही अगला कौल देकर दूसरे दरवाजे की ओर रुख करता।

आजादी मिलने के बाद जमीदारों की जमीदारी भी चली गयी। गांव के अच्छे खासे जमीदार भी अब तंगहाल रहने लगे, कोठी-हवेलियां वीराने खण्डहरों में तब्दील होने लगी। ऐसे ही किसी आड़े वक़्त में माधो जमीदार ने भी बौहरे से कर्ज लिया था। उस दिन जैसे बादल फट रहे थे, इतनी मूसलाधार बारिश हो रही थी, फिर भी उस आंधी-तूफान भरी बारिश में साँझ को बौहरा अपने गांव से माधो के यहाँ उगाही के लिए निकल पड़ा, क्योंकि उस दिन का कौल था। आँधी-पानी झेलते हुए बौहरा कर्जदार के गांव पहुँच जाता है, पहले तो वह रामदास के घर जाता है, हाल-चाल पूछता है, उसके बाद कहता है कि वह माधो के घर उगाही के लिए जा रहा है। रामदास उसे समझाता है कि इस वक़्त उसके यहां न जाये, एक तो बारिश हो रही है, और ऊपर से माधो का लड़का बीमार है। तभी दुर्गी आकर बताती है कि शकुन्तला आयी थी और बता रही थी कि माधो की गाय कहीं खो गयी है, बच्चे को बुखार है, वह दूध के लिए तड़प रहा है। माधो फिर बौहरे को रोकता है, लेकिन वह नही रुकता और उसी समय माधो के घर का रास्ता लेता है।

माधो बौहरे को देखकर चौंक पड़ता है, उसे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि इस तूफान में वह आ धमकेगा। माधो उसे हाथ मुँह धोने के लिए कहता है। क्योंकि वह उसके ससुराल पक्ष के गांव से होता है, तो एक तरह से उसका मेहमान भी हुआ। शकुंतला बौहरे और रामदास दोनों को मामा कहती है, लेकिन मन ही मन बौहरे से बेइंतहा नफरत भी करती है, जबकि रामदास का बहुत सम्मान करती है। इधर बौहरा और माधो गाय को ढूंढने के लिए निकलते है, उधर रामदास भी अपने घर से माधो की गाय ढूंढने के लिए निकलता है।रामदास को थोड़ी देर में गाय मिल जाती है और वह उसे माधो के आंगन में बांध कर अपने घर चला आता है। बेतहाशा बारिश होने की वजह से वह माधो के घर मे किसी को आवाज देकर परेशान करने की जरूरत नही समझता और जल्दी से वहाँ से घर को निकल लेता है। इसी आपा-धापी में उसका गमछा माधो के आंगन में छूट जाता है। इधर माधो और बौहरा एक बड़े नाले के पास जाकर रुक जाते है, उसके आगे उनकी बढ़ने की हिम्मत नही पड़ती, पानी का बहाव इतना तेज होता है कि वे गाय पाने का ख्याल छोड़कर घर की तरफ आ जाते है और गाय को आंगन में बंधा देखकर बहुत आश्चर्य करते है, लेकिन खुशी भी होती है। उस वक़्त दोनों में से किसी की भी निगाह गमछे पर नही पड़ती है। खाना खाकर बौहरा बाहर के कमरे में लेट जाता है। माधो अपनी पत्नी के साथ बाहर की दीवार से सटे हुए अंदर एक कमरे में लेटा रहता है। बौहरे को नींद आ जाती है तुरंत लेकिन घण्टे-दो घंटे के बाद उसकी आंख खुलती है। माधो और उसकी पत्नी बाते कर रहे होते- वह उन्हें सुनने की कोशिश करता है। वे दोनों बौहरे की ही बाते कर रहे थे कि किस तरह उन लोगों को बौहरे जैसे अधर्मी के पाले पड़ना पड़ा। जिस आदमी ने उसे खिलाया पिलाया, पढ़ा-लिखाकर इतना बड़ा किया उसी की बेटी से सूद वसूल रहा है। बौहरा महापापी है, पता नहीं कब इससे पीछा छूटेगा। एक तरफ रामदास भैय्या को देखलो, देवता आदमी है, हमेशा बिना किसी एहसान-भाव के सबकी मदद करने को तैयार रहते है औऱ एक तरफ ये बौहरा है जो सबको बस नोचना चाहता है-यही सब बातें बौहरे का मन घृणा से भर गया। वह बाहर निकल आया और टहलने लगा। टहलते – टहलते उसकी निगाह रामदास के अंगौछे पर पड़ी, उसे यकीन हो गया कि रामदास ही माधो की गाय को ढूंढ़कर बाँध गया था, लेकिन जल्दबाज़ी में अपना अंगौछा भूल गया। बौहरे को रामदास की अच्छाई से ताजिंदगी नफरत रहती है आज उसे मौका मिल गया कि वह रामदास को बदनाम कर सके । रात के दो बज रहे होते है, चांद बादलों में लुका-छिपी कर रहा है, फुहारें पड़ रही है और बौहरे के अंदर का हैवान जाग रहा है। वह माधो के बछड़े को खोलता है, उसे घसीटते हुए तेज वेग से बहते नाले की ओर ले जाता है और धक्का देकर धकेल देता है। बछड़ा थोड़ी देर छटपटाता है, फिर एक झाड़ी में फसकर दम तोड़ देता है।

सुबह होती है। माधो और उसकी पत्नी बछड़े को न पाकर परेशान होते है। उसकी छानबीन की जाती है और बछड़ा नाले में मरा पड़ा मिलता है। लोगों को शक होता है कि चोर उसे कसाई को बेचने के लिए ले जा रहा होगा लेकिन नाले के बहाव को पार कर पाना मुश्किल रहा होगा और इसलिए चोर ने बछड़े को वही छोड़कर अपनी जान बचाई होगी। लेकिन गांव में ऐसा जघन्य पाप भला कौन कर सकता था। सब लोग घर की तरफ लौटते है तभी बौहरा सबको उस अंगौछे की तरफ ध्यान दिलाता है और कहता है कि यह अंगौछा तो रामदास का लगता है। शक की सुई रामदास की ओर घूम जाती लेकिन माधो या उसके परिवार में कोई भी यह नही सोच सकता था कि रामदास जैसे भलेमानुस ऐसा कर सकता है- और वो ऐसा करेगा क्यों? लेकिन फिर भी बौहरा के कहने पर सब लोग रामदास के घर जाते है। रामदास बताता है कि उसी ने गाय को ढूँढ़कर आंगन में बाँधा था, क़्योंकि मौसम ठीक नही था इसीलिए उसने किसी को आवाज देकर परेशान नही किया और अपने घर चला आया, जल्दबाजी में अंगौछा वही गिर गया। “और फिर आधी रात के बाद जाकर बछड़े को नाले में धकेल दिया?” रामदास को काटो तो खून नही- उसने लाख मना किया कि उसने यह नीच काम नही किया लेकिन गांव में कोई उसकी बात ही न सुने।

गांव के पंडित जी बुलाये गए, उन्होंने ऐलान किया कि एक साल तक रामदास को गांव से बाहर भिक्षा मांगकर अपना जीवनयापन करना पड़ेगा, प्रायश्चित के रूप में। गांव के ज्यादातर लोगों को बछड़े को मारने की बात नागवार गुजरी, किसी को यकीन तो नही हो रहा था कि रामदास ऐसा कर सकता है लेकिन आम सहमति बाद में यही बन गई कि रामदास को गांव छोड़ना पड़ेगा। रामदास अपने घर लौट आता है। धूप निकल आयी थी। अभी कल भयानक बारिश और आज भयानक धूप। उमस के मारे बुरा हाल था। रामदास के घर मे पीने का पानी नही था। दुर्गी पानी लाने के लिए कुँए पर जाती है। गांव में एक सिपाही रहता है जो तहसील में नौकरी करता है, दुर्गी को पानी भरने से मना करता है। “तुम्हारे पति के सर गौहत्या का पाप लदा है, हम तुम्हे अपने गांव में पानी नही भरने देंगे” तब तक पंडित आ जाते है और वो भी दुर्गी को पानी भरने से मना करते है। वह कुछ बोलती ही नही, बस कुँए की जगत पर बैठी रहती है। तभी पंडित को गुस्सा आ जाता है, वह कुँए की जगत पे जाकर उसे अपने पैरों से धकेल देता है। उसकी गगरी फुट गयी, और वह खुद लुढ़क के नीचे आ गयी। भगवान की माया देखो, दुर्गी को तो मामूली चोटें आती है, पर वही पंडित जी को चक्कर आ जाता है, वो गिर पड़ते है और उन्हें उल्टियां आनी शुरू हो जाती। कई लोगों की मदद से उन्हें घर पहुंचाया गया, पर घर जाकर भी उन्हें राहत नही मिलती है। घर आकर तो उनको दस्त लग जाते है। और जब तक रामदास को इन सबकी खबर पहुँचती है और वो पंडित की मदद करने के लिए घर से निकलता है, और उनके घर तक पहुँचते पहुँचते पंडित की मौत हो जाती है। एकाध घंटे यही हालत पंडितानी की होती है। उल्टी-दस्त लगते ही वो बजी साँझ तक भगवान को प्यारी हो जाती है। लोग समझ जाते है कि गांव हैजे की चपेट में आ गया।

लोग पंडित को अग्नि के हवाले कर के गांव में लौटते है तो पता चलता है कि कई घर हैजे की जद में आ गए । लोग रामदास का बहिष्कार भूल कर अपने प्रियजनों को बचाने में लग जाते है। रामदास सबकी मदद करने को दौड़ता है, अब उसे कोई बहिस्कृत नही समझता है। बौहरे को अपना प्लान फेल दिखाई पड़ता है तो वह रामदास को माधो के विरुद्ध बहकाने की कोशिश करता है लेकिन रामदास उसे बताता है कि यह समय आपसी द्वेष दिखाने का नही बल्कि एक दूसरे को बचाने का है। उसे भी लोगों की मदद करने के लिए दौड़-भाग में लगना चाहिए। बौहरा तब माधो को साथ मे लेता है और घर घर लोगों की मदद के लिए निकल पड़ता है। गांव में दूसरे दिन हर घर से लाशें निकलने लगती है। लोग ढूंढे नही मिलते जो लाशो को ठिकाने लगा दे। गांव में सियार और कुत्तों का झुंड घूमने लगा। दिन में आकाश में चीलें मंडराती थी। शहर में खबर भेजी जाती है कि डॉक्टरों का दल भेजा जाए लेकिन कौन बाढ़ के पानी को पर करके गांव पहुँच सकता था? गांव में बड़ा ही वीभत्स दृश्य! बौहरा और माधो साथ मे लाशो को निकालने के काम पर लग जाते है। इस भयंकर दैवीय प्रकोप में भी बौहरा अपनी धन की लिप्सा से बाज़ नही आता है और हर वो घर जिसमे वो लाशें निकालने जाता है, पहले उसे लूटता है। माधो कहता है कि ये गलत तो बौहरा उसे समझाता है कि सही गलत कुछ भी नही है। एक एक घर वीरान हुआ जा रहा है। बाद में पुलिस आएगी तो हम लोगो के हाथ कुछ नही लगेगा। मेहनत हम कर रहे है और रकम-जेवर पुलिस लूट ले जाएगी। हैजे के रूप भगवान ने हमको तुमको अमीर बनने का मौका दिया है। बस मौके की नजाकत को समझो। जिंदगी में सबसे बड़ा धर्म पैसा ही है। इस दौरान तुम मेरा कर्ज चुका सकते हो और इतना बचा सकते हो की आगे की जिंदगी आराम से काट लो। पहले तो माधो का मन नही मानता है, लेकिन अपनी पुरानी जमीदारी और वर्तमान हीन दशा को सोचकर और बौहरे को दो तीन घर लूटते हुए देखकर वह उसके साथ हो जाता है। कुछ ही घंटो में माधो बौहरे का कर्जा चुका देता है जो और कुछ हजार रुपए उसके जेब मे आ जाते है। माधो की पुरानी जमीदारी वाला रौब लौटने लगता है- अब वह हर घर की लूट में आधा हिस्सा मांगता है। वे दोनों पूरी रात चैन नही लेते है, और गांव के हर घर की लाश को शमशान पहुँचा के ही दम लेते है। अगली सुबह भी शहर से कोई मदद नही पहुँचती है। दोनों रामदास से मिलते है और उसे रिपोर्ट करते है।


रामदास उन्हें बताता है कि एक ठाकुर साहब मृत्यु शय्या पर पड़े। उनके घर मे उनके एक नौकर और पोते के सिवा कोई नही है। नौकर की कल मौत हो गई और उनका पोता शहर में पढ़ता है, उसे तार भेजा गया है, वो अगली सुबह तक आता ही होगा। तुम दोनों मेरे साथ चलो।

तीनो ठाकुर साहब के घर की ओर प्रस्थान करते है। बरामदे से अंदर एक कमरे में ठाकुर साहब लेटे हुए हैं। उनकी आखिरी साँसे चल रही है। बस उनकी जान केवल अपने पोते में अटकी है, वो रामदास से कहते है कि रोशन (पोता) को एक बार बुला दो। रामदास उन्हें बताता है कि तार भेजा जा चुका है। शहर से गांव आने का रास्ता बहुत खराब है, हो सकता है उसे थोड़ा देर लग जाए, लेकिन शाम तक आ जायेगा। ठाकुर को रामदास पर सर्वाधिक विश्वास है, वो कहते है कि वह उन्ही के पास रहे। लेकिन रामदास को और घरों में भी हाल खबर लेने जाना रहता है, इसीलिए माधो और बौहरे को ठाकुर साहब की जिम्मेदारों सौंपकर वह गांव में निकल जाता है। गुजरते वक़्त के साथ शाम होने को आती है, ठाकुर साहब की हालत बिगड़ती जा रहा है, उन्हें भरम होता है कि रोशन आ गया है, वह पुकारते है, “रोशन, रोशन, आ गए बेटा।“ दोनों को लगता है बुड्ढे की जान पोते में ही लटकी है। जरूर कोई बड़ी बात है जो पोते को बताकर ही मरना चाहते हैं। फिर कुछ देर बाद वह रामदास को पुकारने लगते है। पूरे गांव में रामदास पर ही उनका अटूट विश्वास था। कहने लगते हैं, “ मुझे नही लगता है कि मैं मरते वक़त पोते का चेहरा देख पाऊंगा, बस मैं तुम्हे ही यह राज बताकर मरना चाहता हूँ।“ बौहरा तुरंत माधो से कहता है, “ यही मौका है, राज पता करने का, पूरा घर छान मारा, कही कुछ बड़ी चीज हाथ नहीं लगी, जरूर कोई बड़ा खजाना है बुड्ढे के पास है”। वह तुरंत कहता है,
“ हाँ ठाकुर साहब मैं ही रामदास हूँ, कहिये क्या कहना चाहते है”
“ देखो रामदास, पूरे गांव में सिर्फ तुम पर ही मुझे विश्वास है, पिछले कमरे के कोने में एक पीतल के बर्तन में डेढ़ लाख रुपये गड़े हुए है, मैं चाहता हूँ कि मेरे न रहने पर ये रुपये तुम रोशन के हवाले कर देना”
“ठीक है, ठीक है, आप चिंता मत कीजिये”
इतने के बाद ही ठाकुर साहब के प्राण पखेरू उड़ गए।
अब दोनों में इस बात को लेकर बहस होने लगी कि खोदेगा कौन और रखवाली करने के साथ साथ लालटेन कौन पकड़ेगा। उधर ठाकुर साहब आंखे खोले दुनिया से अलविदा कह गए। ये भी नही सोचा दोनों ने की उनकी आँखे बंद कर के चेहरा ढक दें।
अंधेरा हो चुका था। बड़ी देर तक बहस के बाद यह तय हुआ कि बौहरा खोदेगा, माधो लालटेन दिखाने के साथ साथ रखवाली करता रहेगा कि कोई आ तो नही रहा है, और पैसा दोनों बराबर बाँट लेंगे।
दोनों काम पर लग जाते है। आगे पीछे सारे दरवाजे खिड़कियां बन्द। माधो को यह ख्याल आता है कि अगर आधी रकम ही बौहरा पायेगा तो तब भी वह हमेशा उससे अमीर रहेगा और उसकी अमीरी का राजदार भी, इसका कोई भरोसा नही। माधो कहता है कि वह ¾ हिस्सा लेगा क्योकि वह ज्यादा मेहनत कर रहा है। थोड़ी देर बाद रुपये निकल आते है, और दोनों में झगड़ा बढ़ जाता है, और इस कदर बढ़ता है कि बौहरे के हाथों माधो की हत्या हो जाती है।
तभी कुछ ही देर में दरवाजे पर दस्तक होती है।बौहरा झांककर देखता है तो नारायनी खड़ी होती है।आखिरकार वह दरवाजा खोलता है, वह तुरंत माधो के बारे में पूछती है,जिसे कुछ ही देर में वह दूसरे कमरे लहू लुहान पड़े देखती है। वह जान जाती है कि बौहरे ने ही उसकी हत्या की है, वह उसे जान मारने को दौड़ती है। लेकिन बौहरा यहाँ पर कूटनीति से काम लेता है- वह नारायनी से कहता है कि वह माधो के खून का इल्जाम अपने सर ले ले-कारण ये होगा कि-नारायनी और बौहरा दोनों एक दूसरे को बचपन से चाहते थे,लेकिन उसके पिता ने जबरदस्ती उसकी शादी माधो से कर दी, आज जब माधो ने बौहरा और नारायनी को एक साथ देख लिया तो वह अपना आपा खो बैठा, और नारायनी को जान से मारना चाहा, लेकिन अचानक हथियार नारायनी के हाथ लग गया, और आत्मरक्षा में उससे माधो की हत्या हो गयी। बौहरा उसे समझाता है कि उसके पास इतने पैसे है कि वह आराम से पूरी जिंदगी ऐश में काटेगी और वह उसे सजा भी होने नही देगा, इसके अलावा वह उसे पूरी जिंदगी अपने घर रखने को तैयार है और अपनी कोई औलाद भी उससे नही पैदा करेगा, बौहरे का सारा धन उसके बेटे को ही मिलेगा। किसी तरह वो उसे तैयार कर लेता है। पुलिस आती है। नारायनी गिरफ्तार हो जाती है। लेकिन हर किसी को ये बात खटकती रहती है कि जब बौहरा और माधो ही सारा समय साथ मे थे तो नारायनी कैसे माधो का खून करने पहुच गयी। बौहरे ने जो भी कारण बताया था, पर कोई उस पर यकीन नहीं कर पाता है। शकुंतला को इस बात पर पूर्ण विश्वास होता है कि हो न हो उसके बाप का खून बौहरे ने ही किया है और बाद में उसकी माँ को इल्जाम अपने सर लेने पर मजबूर किया होगा। नारायनी तो शून्य में चली जाती है, न कुछ कहती है, न ही जवाब देती है। इधर बौहरा थानेदार से साठ गाँठ करके कोई बलि का बकरा ढूंढने की कोशिश करता है जिससे नारायनी को छुड़ा सके, और इसी के चलते वह रामदास को माधो के खून का जिम्मेदार ठहराने की कोशिश करता है। बस यही उससे गलती हो जाती है।
रामदास को पुलिस कस्टडी में ले लेती है, और तभी गांव में बवाल उठ खड़ा होता है। पूरे गांव थाने को घेर लेते हैं। “मास्टर को छोड़ दो” “मास्टर को छोड़ दो” के नारे लगाने लगते है। पुलिस भीड़ रोकने में नाकाम होती है।
तभी किसी को पास के एक नाले में एक लाश पड़ी मिलती है। लाश को कुत्तों और सियारो ने इस कदर नोचा था कि उसकी शिनाख्त कर पाना मुश्किल था। बड़ी देर बाद पता चलता है कि लाश बौहरे की थी। पुलिस रामदास को शक के घेरे में फिर लेती है कि हो न हो रामदास ने बौहरे का खून करवाया होगा। इस पर दुर्गी सामने आती है, वो कहती है कि मैंने मारा है। रामदास और उसकी पत्नी को बचाने के लिए नारायनी सामने आती है, कहती है कि उसने बौहरे को मारा है क्योंकि उसने उसके पति की हत्या की थी। वाकई में असली कातिल शकुन्तला होती है जिसने रात के अंधेरे का फायदा उठाकर बौहरे को चाकू से गोद दिया था, तब तक वार किए जब तक वह मर नही गया। जब वह देखती है कि उसकी मां अपने सर इल्जाम ले रही है, तो वह खुद सामने आती है, और इक़बाले जुर्म करती है पर कोई उसकी बात ही नही मानता है। दोनों माँ बेटी लगभग भावावेश में पागल हो जाती है, फिर अचानक न जाने क्या होता है, शकुंतला तेजी से बहते नाले की ओर भागती है हर उसमे छलाँग लगा देती, उसकी माँ उनके पीछे उसे पकड़ने के लिए दौड़ती है, और फिसलकर नाले में गिर जाती है, उसका बच्चा वही भीड़ के बीच धूल में लोटता रहता है। उपन्यास खत्म हो जाता है।
पूरा उपन्यास जो कि मैंने एक ही दिन में पढ़ डाला, पढ़ने के बाद लगता है कि यह शेक्सपीयरियन ट्रेजेडीस से प्रभावित है। जैसे हैमलेट, ओथेलो, मैकबेथ आदि में लगभग सभी पात्र मर जाते है वैसे इसमे भी, उन्ही ट्रेजेडीस की भांति इसमे एक मुख्य पात्र की धन के प्रति कट्टर प्रेम को प्रदर्शित किया गया है जबकि एक पात्र को मानवीय भूलों का परिचायक और एक को निहायत ही शरीफ और उदार दिखाया गया है। कुल मिलाकर पढ़ने लायक किताब है।


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