कस्तूरी कुण्डल बसै - मैत्रेयी पुष्पा

कस्तूरी कुण्डल बसै - मैत्रेयी पुष्पा (2.5/5)

आश्चर्यचकित हूँ कि पढ़ डाला इस किताब को, कई बार मन में आया कि क्यों पढ़ रहा हूँ, लेकिन बस खत्म हो गई अधूरी कहानी की तरह। मैत्रेयी पुष्पा की यह पहली किताब है जो मैंने पढ़ी, ऐसा नहीं कि पहले मौका नही मिला, जिन दिनों लाइब्रेरी जाने का शौक था, मैत्रेयी पुष्पा की बहुत सी किताबें दिखती थी रैक में लेकिन यह सोचकर कि बिकती तो होगी नही ज्यादा इसीलिए लाइब्रेरी में अटी पड़ी रहती है, मैंने नही पढ़ा। लेकिन जब एक बहुत ही सज्जन प्रिय मित्र ने दिया पढ़ने को तो पढ़ ही डाला। इससे पहले जिन महिला लेखिकाओं को पढ़ा मैंने जैसे जेन ऑस्टेन, तस्लीमा नसरीन, कमला दास, शशि देशपांडे और ई एल जेम्स, इनमे से ज्यादातर पुरुषों के बारे में लिखती है , पुरुषों की खूबसूरती और उनके अहं और किस तरह पुरुष स्त्रियों को डोमिनेट करते हैं इत्यादि इत्यादि। ये सब बातें तो स्त्रियों के लेखन में यूनिवर्सल है, लेकिन मैत्रेयी पुष्पा ने इनको सेकेंडरी प्लेस दिया है इस किताब में ।


पुस्तक, “ कस्तूरी कुण्डल बसै ” जो कि एक आत्मकथा रूपी उपन्यास है, में लेखिका के माँ की कहानी है और साथ साथ लेखिका की भी कहानी है। पात्र जो कि वास्तविक है, उत्तर प्रदेश के जिलों जैसे झांसी और अलीगढ़ क्षेत्र के है। कस्तूरी मुख्य पात्र है जो कि लेखिका की माँ है। कस्तूरी उत्तर प्रदेश की सामान्य माताओं जैसी नही है, परिस्थितियां उसे “दंगल” मूवी के आमिर खान जैसा लेखिका मतलब अपनी पुत्री के सेहत के लिए हानिकारक बना देती है। होता यूं है कि कस्तूरी जिसकी पैदाइश देश की आजादी के पहले की होती है, थोड़ी बड़ी होने पर उसके माँ बाप पैसे लेकर एक उम्रदराज आदमी से उसकी शादी कर देते है। कस्तूरी आगे पढ़ना चाहती थी पर उसकी पढ़ाई छूट जाती है। पहले एक बेटा पैदा होता है पर मर जाता है, फिर एक दो वर्ष में बेटी पैदा होती है लेकिन कुछ दिनों बाद उसका पति मर जाता है। अब घर में बचते हैं माँ बेटी और वृद्ध ससुर। कस्तूरी के आगे बड़ी विडंबना, क्या करे। लेकिन ऐसी परिस्थिति में कस्तूरी बहुत साहस का परिचय देती है। अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करती है,बेटी और घर को भी संभालती है किसी तरह, गांव से कई किलोमीटर दूर कस्बे में पढ़ने जाती है, हाइस्कूल पास करती है और फिर उसे ब्लॉक लेवल पर एक नौकरी मिल जाती है। नौकरी करते हुए कई सालों में एडीओ (सहायक विकास अधिकारी) के पद पर हो जाती है। कस्तूरी गांव वालों के लिए एक मिसाल है, महिला शशक्तिकरण की प्रतिमूर्ति है। लेकिन इन सालो के दरमियान कस्तूरी सामाजिक व्यस्था, रीति रिवाजों यथा विवाह, दहेज, जाति प्रथा और महिला उत्पीड़न जैसे सामाजिक अपराधों की मुखर विरोधी होती जाती है। जैसा कि लेखिका बार बार जिक्र करती है कि सुई अटक गई है कस्तूरी देवी के मन मस्तिष्क में, उनके लिए अपने सिद्धांत ही सबकुछ है और किस प्रकार से कस्तूरी के सिद्धांत कथानक को गढ़ते है यही कहानी है इस किताब की।
.
तो ये तो रही कस्तूरी देवी की बात, अब उनकी बेटी मैत्रेयी यानी लेखिका पर आते है। जिन दिनों कस्तूरी को नौकरी करने और आगे बढ़ने का जुनून पगलाए था, उन्ही दिनों शायद मैत्रेयी को अपनी माँ के पास होने की सबसे ज्यादा जरूरत थी। नौकरी के दौरान एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ट्रांसफर और फील्ड वर्क का काम होने के कारण कस्तूरी अपनी बेटी को हमेशा साथ नही रख पाती थी, उसके हिसाब से अगर मैत्रेयी एक जगह रहकर पढ़ेगी तो पढ़ाई ठीक चलेगी और इस वजह कभी किसी रिश्तेदार कभी किसी जान-पहचान वाले के यहाँ उसको छोड़ देती थी इस दौरान बहुत सारी ज्यादतियां होती है मैत्रेयी के साथ, बाल यौन शोषण जैसे घिनौने दुष्प्रयास होते है। इन्ही सब को झेलते हुए मैत्रेयी का अपनी माँ से वैचारिक और आचारिक दोनों स्तर पर गहरा मतभेद होता जाता है। एक ओर उसकी माँ जो विवाह और दहेज को महिलाओं के प्रगति में सबसे बड़ी बाधा मानती है वही मैत्रेयी ग्रेजुएशन तक पहुँचते पहुँचते खुद ही अपनी मां से शादी कर देने को कहती है। शायद कहीं न कही वह बचपन से अपने अकेलेपन को झेलते हुए थक गई थी या वो प्रकट रूप से अपनी माँ को गलत सिद्ध करना चाहती थी कि जरूरी नहीं जैसा उसकी मां के साथ हुआ वैसा उसके साथ भी हो।

शुरू मे तो कस्तूरी देवी तैयार ही नही होती है, उनका कहना था कि मैत्रेयी को और पढ़ना चाहिए और कोई अच्छी नौकरी करनी चाहिए, लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, गांव वालों और रिश्तेदारों के दबाव में आकर कस्तूरी अपनी लड़की की शादी करने को तैयार हो जाती है। अब एक नई मुश्किल सामने आती है लड़का ढूंढने की, लड़का वो भी पढ़ा लिखा, नौकरीदार और दहेज न माँगनेवाला, अब ब्राह्मणों में ऐसा लड़का जो दहेज न मांगे मिलना उस वक़्त बड़ा मुश्किल। कस्तूरी को तो दहेज के नाम से भी चिढ़, कुछ ब्राह्मणों ने तो उसकी बात केवल इसलिए नही सुनी क्योंकि वह औरत होकर कैसे रिश्ता तय कर सकती, क्योंकि की औलाद के रिश्ते तो अक्सर पुरुष गार्जियन या बाप ही करता है। एक डेढ़ साल तक लड़का ढूंढने में ही बीत गए, आखिरकार एक डॉक्टर साहब तैयार होते है, जो कि कस्तूरी के संघर्ष के बारे में सुनकर बहुत प्रभावित हुए थे, और शादी के लिए हां कर दिया।
.
शादी होती है, शादी के दौरान गांव में जो सामुदायिक भावना देखने को मिलती है, वही हमारे देश को दुनिया के सर्वोच्च नैतिक स्तर पर खड़ा करती है। एक अकेली स्त्री के लिए लड़की की शादी करना कितना बड़ा काम होगा उस समय, जब देश किशोरावस्था में था और गांवों के देश ही जाना जाता था। पूरा गांव सहयोग करता है, जैसे गांव के हर घर मे शादी हो। ऐसा माहौल आजकल भी गांव में देखने को मिल सकता है, गांव का मिजाज ही कुछ ऐसा है। गांव की भारतीय शादियों के पूरे विहंगम दृश्य का वर्णन किया है लेखिका ने। शादी हो जाती है, ससुराल और मायके का आना जाना होता है। जिस कस्तूरी का अबतक मर्दों से छत्तीस का आंकड़ा था, वह अपने दामाद को कितना सम्मान और अपनापन देने लगती है यह देखना भी इंटरेस्टिंग रहा।

.
साल भर नही बीतते है, और पता चलता है मैत्रेयी गर्भवती है। लड़की पैदा होती है, और उन्ही दिनों पता चलता है कि कस्तूरी देवी लखनऊ में गिरफ्तार कर ली गयी है। दरअसल उन दिनों कस्तूरी देवी लखनऊ में एक धरने का नेतृत्व कर रही होती क्योंकि सरकार उनकी और उनके साथ की महिलाओं की नौकरी को समाप्त कर के उन्हें चिकित्सा विभाग में मिडवाइफ बनाये दे रही थी। ये धरना उसी विभाग में पुराना पद प्राप्त करने के लिए था। माँ की गिरफ्तारी और बेटी की पैदाइश; डबल दुख, उनके दामाद को जब ये बात पता चलती है, तो वो अपनी सास को छुड़ाने के लिए तैयार होते हैं और लखनऊ के लिए निकल जाते हैं। कुछ दिनों के बाद मैत्रेयी को फोन कर के बताते है कि उसकी मां की जमानत मिलने में बहुत मुश्किल आ रही है, फिर भी वह कोशिश कर रहे हैं और हर सम्भव प्रयास करेंगे....। बस इसी जगह उपन्यास खत्म हो जाता है और कस्तूरी की कहानी अधूरी रह जाती है।
.
आत्मकथा होते हुए भी, क़िताब उपन्यास शैली में लिखा है लेखिका ने, यह एक खास बात है। बाकी किताब को पढ़ना बिल्कुल ऐसा रहा जैसे पड़ोस में बगल वाली चाची आके अपनी कहानी बता गयी हो, कहने का मतलब जिन चीजों से आप पहले से ही बहुत ज्यादा परिचित रहते हैं तो कुछ ऐसी ही फीलिंग आती है। इसके अलावा एक दो जगहों पर मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। कुल मिलाकर ठीक-ठाक है।

Comments