Raag Darbaari by Shrilaal Shukla



एक बारात से देर रात लौटते वक्त चर्चा के दौरान मुझे पता चला कि बहुत सी अच्छी किताबो में जो मैंने अब तक नही पढ़ी है उनमें श्री लाल शुक्ल की राग दरबारी भी है। वैसे सुन तो बहुत रखा था इस किताब के बारे में पर कभी सौभाग्य नही प्राप्त हुआ पढ़ने का। लौटकर सबसे पहले इस पुस्तक को खरीदा और पढ़ डाला (तीन दिन लगे )।
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किताब में जो सबसे अच्छी बात है वो यह कि इसमें प्यार वाला चुतियापा नही, कोई हीरोइन नही है डिरेक्टली । प्यार का जो सियापा हमारे साहित्य , कला और फिल्मों में आदिकाल से चला आ रहा है और मुझे नही लगता है कि ये अभिव्यक्ति के क्षेत्र कभी इस सियापे से मुक्ति पाएंगे,पर उपन्यासकार ने इस सियापे से हटकर खालिस देहाती पृष्टभूमि और कोरी गप्प के जरिए आज़ादी के बाद देश की तमाम व्यवस्थाओ पर कटाक्ष किया है।
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पूरा उपन्यास व्यंग्य से भरा हुआ है और हर एक पेज आपको हंसाएगा साथ साथ सोचने पर भी मजबूर करेगा। कुछ लाइनें बहुत अच्छी लगी-
१- वर्तमान शिक्षा पद्धति रास्ते मे पड़ी हुई एक कुतिया है जिसे कोई भी लात मार सकता है।
२-गालियों का मौलिक महत्व आवाज की ऊँचाई में है।
३-लेक्चर का मजा तो तब है जब सुनने वाला भी समझे मैं बकवास कर रहा हूँ और बोलने वाला भी समझे मैं बकवास कर रहा हूँ।
४-इस देश मे जाति प्रथा खत्म करने की यही एक सीधी सी तरकीब है। जाति से उसका नाम छीनकर उसे किसी आदमी का नाम बना देने जाति के पास कुछ रह नही जाता। वह अपने आप खत्म हो जाती है, उदाहरण हेतु गांधी और पटेल।
५-जो खुद कम खाता है दूसरों को ज्यादा खिलाता है, खुद कम बोलता है दूसरो को ज्यादा बोलने देता है वही खुद कम बेवकूफ बनता है दूसरो को ज्यादा बेवकूफ बनाता है।
इस तरह की विचारोत्तेजक सैकड़ो लाइनें है उपन्यास में, और फूल मजेदार!!!!👌

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